Thursday, February 21, 2013

कुछ सूनापन सा लगता है...

पतझर आया, पत्ते टूटे
टहनी से कुछ तिनके छूटे
थपकाती मस्त हवाओं में
उगते सपनों की छाओं में
किलकारी भरते ये तिनके
आंधी से अनभिग ये तिनके
शायद ये इक दिन बीज बनें
अंकुर इनमें भी फूटेगा
इक नयी फ़सल की नीव बनें...
 
पर आज मुंडेरी पर बैठा
जाते इनको मैं देख रहा
पल से ओझल हो जाते हैं...

कुछ सूनापन सा लगता है...

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